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भाग ४.३

कहों, क्या हम खुदा के सिवा ऎसी चीज़ को पुकारें जो न हमारा भला कर सके न बुरा और जब हमको खुदा ने सीधा रास्ता दिखा दिया, तो (क्या) हम उलटे पाँव फिर जाएँ? जबकि अल्लाह ने हमें मार्ग पर लगा दिया है (फिर हमारी ऐसी मिसाल हो) जिसे किसी शैतान ने जंगल पर लगा दिया है (फिर हमारी ऐसी मिसाल हो) जिसे किसी शैतान ने जंगल में भुला दिया हो (और वह) हैरान (हो रहा हो) और उसके कुछ साथी हों जो उस को रास्ते की तरफ बुलाएं की हमारे पास चला आ. कह दो की रास्ता तो वही है, जो खुदा ने बताया है और हमें तो यह हुक्म मिला है की हम अल्लाह, रब्बुल आलमीन के फर्मबदार हो.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- ७१

 (ऐ मुहम्मद!) इनसे कह दो की मुझे इस बात से मना किया गया है की जिनको तुम खुदा के सिवा पुकारते हो, उन की इबादत करूँ (और में उन की कैसे इबादत करूँ,) जबकि मेरे पास परवरदिगार (की तरफ) से खुली दलीले आ चुकी हैं और मुझको ये हुक्म हुआ है की सारे जहां के परवरदिगार ही के फरमान के ताबेअ हूँ.
-कुरआन, सुरा ४०, आयत- ६६

वही तो है जिस ने तुम को (पहले)  मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फा बना कर, फिर लोथड़ा बना कर, फिर तुमको निकालता है (की तुम) बच्चे  (होते हो) फिर तुम अपनी जवानी को पहुचते हो, फिर बूढ़े हो जाते हो और कोई तुममे से पहले ही मर जाता है और तुम (मोंत के) मुक़र्रर वक़्त तक पहुच जाते हो, और ताकि तुम समझो.
-कुरआन, सुरा ४०, आयत- ६७

(ऐ मुहम्मद!) कह दो की लोगों! मै तुम सब की तरफ खुदा का भजा हुआ (यानी उस का रसूल) हूँ. (वह) जो आसमानों और ज़मीन का बादशाह है , उसके सिवा कोई माबूद (यानी पूज्य) नहीं. वही ज़िन्दगी बख्शता और वहीँ मोत देता है, तो खुदा पर हम और उसके रसूल पैगम्बर उम्मी पर, जो खुदा पर और उसके तमाम कलाम पर ईमान रखते हैं, ईमान लाओ और उनकी एरवी करो, ताकि हिदायत पाओ.
-कुरआन, सुरा ७, आयत- १५८ 

और (ऐ पैगम्बर !) तुम को जो हुक्म भेजा जाता है, उस की पैरवी किये जाओ और (तकलीफों पर) सब्र करो, यहाँ तक की खुदा फैसला कर दे. वह सब से बेहतर फैसला करने वाला है.
-कुरआन, सुरा १०, आयत- १०९ 

कह दे की जो लोग खुदा पर झूठ बुह्तान बांधते हैं, फलाह (कामियाबी) नहीं पायेंगे.
उनके लिए जो कायदे हैं, दुनिया में (हैं), फिर उनको हमारी ही तरफ लोट कर आना है. उस वक़्त हम उनके कड़े अज़ाब (के मज़े) चखाएंगे, क्यूँ की कुफ्र (की बातें) किया करते थे.
-कुरआन, सुरा १०, आयत- ६९,७०

(ऐ पैगम्बर !) यह उन (हिदायतों) मै से हैं जो खुदा ने हिकमत की बातें तुम्हारी तरफ वह्य की हैं और खुदा के साथ कोई और माबूद न बनाना की (ऐसा करने से) मलामत किया हुआ और (खुदा की दरगाह से) धुत्करा हुआ बना कर जहन्नम में दाल दिए जाओगे.
-कुरआन, सुरा १७, आयत- ३४

और कह दो की (लोगों !० यह कुरआन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक (पर) हैं, तो जो चाहे ईमान लाये और जो चाहे काफिर रहे. हम ने जालिमों के लिए (दोज़ख की) आग तैयार कर राखी है, जिस की कनातें उस को घेर रही होंगी और अगर फ़रियाद करेंगे, तो ऐसे खोलते हुए पानी से, उन की दाद्रसी की जायेगी जो पिघले हुए ताम्बे की तरेह (गर्म होगा ओर जो) मुहों को भून डालेगा. (उनके पीने का) पानी भी बुरा और आराम गाह भी बुरी.

(और) जो ईमान लाये और काम भी नेक करते रहे, तो हम नेक काम करने वालों का बदला बर्बाद नहीं करते.
ऐसे लोगों के लिए हमेशा रहने के बाग़ है, जिन में उनके (महलों) के निचे नहरें बह रहीं हैं. उनको वहां सोने के कंगन पहनाये जायेंगे और वे बारीक दीबा और अतलस के हरे कपडे पहना करेंगे (और) तख्तों पर तकिये लगा कर बैठा करेंगे. (क्या) खूब बदला और (क्या) खूब आरामगाह है.
-कुरआन, सुरा २१, आयत- २९ 

और जो आदमी उनमे से यह कहे की खुदा के सिवा मई भी पूज्य हूँ तो उसे दोज़ख की सज़ा देंग और जालिमो को हम ऐसी सज़ा दिया करते हैं. 
-कुरआन, सुरा २१, आयत- २९
और (ऐ मुहम्मद!) हमने तुम को सम्पूर्ण दुनिया के लिए रहमत बना कर भेजा है.
कह दो की मुझ पर (खुदा की तरफ से) यह वह्य अति है की तुम सब का माबूद (यानी पूज्य) एक खुदा है, तो क्या तुम फरामबदार होते हो?
-कुरआन, सुरा २१, आयत- १०७, १०८

भाग ४.४

जो खुदा इल्तिजा करते हैं की ऐ परवरदिगार ! हम ईमान ले आयें, सो हमको हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा और दोज़ख के अज़ाब से बचा.

ये वही लोग हैं जो (कठिनाइयों में) सब्र करते हैं और सच बोलते हैं और इबादत मै लगे रहते और (खुदा की) राह मै खर्चा करते और सहर (भोर) के वक़्त मै गुनाहों की माफ़ी मानागा करते हैं.

खुदा तो इस बात की गवाही देता है की उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं है और फ़रिश्ते और इल्म वाले लोग, जो इन्साफ पर काकाम हैं, ये भी (गवाही देते हैं की) उस गाकिब हिकमत वाले के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है.
-कुरआन, सुरा ३, आयत- १६, १७, १८ 

किसी चीज़ को खुदा का शरीक न बनाना और माँ-बाप से (बाद सलूकी, न करना, बल्कि) सुलूक करते रहना और निर्धनता (के खतरे) से अपनी ओलाद को क़त्ल न करना, क्यों की तुम को और उन को हम रोज़ी देते हैं और बे-हयाइ के काम ज़ाहिर हों या छिपे हुए, उन के पास फटकना. और किसी जान (वाले) को जिस के क़त्ल को खुदा ने हराम कर दिया है क़त्ल न करना, मगर जायज़ तोर पर जी का शरियत हुक्म दे. इन बातों की वह तुम्हे ताकीद फरमाता है, ताकि तुम समझो.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- १५१ 

और ऐसे लोगों की तोबा कुबूल नहीं होती जो (साड़ी उम्र) बुरे काम करते रहे, यहाँ तक की जब उन में से किसी की मोत आ मोजूद हो तो उस वक़्त कहने लगे की अब मई तोबा करता हूँ और न उसकी (तोबा कुबूल होती है) जो कुफ्र की हालत मै मरे. ऐसे लोगों के लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- १८

भाग ४.५

मानवता की भलाई के लिए अनुकरणीय शेष्ठ सदाचार है इस्लाम में:

मोमिनो! अपने घरों के सिवा दुसरे (लोगों के) घरों मै घर वालों की इजाज़त लिए और उन को सलाम किये बगैर दाखिल न हुआ करो, यह तुम्हारे हक मै बेहतर है (और हम यह नसीहत इसलिए करते हैं की) शायद तुम याद रखो.
-कुरआन, सुरा २४, आयत- २७ 

और अपनी कोम की बेवा ओरतों के निकाह कर दिया करो और अपने गुलामो और लोंडियों  के भी जो की नेक हों ( निकाह कर दिया करो) और वे गरीब होंगे तो खुदा उनको अपने फजल से खुशहाल कर देगा और खुदा (बहुत) वुसअत वाला और (सब कुछ) जानने वाला है.
-कुरआन, सुरा २४, आयत- ३२ 
और अगर मोमिनो मै से कोई दो फरीक आपस मै लड़ पड़े, तो उन मै सुलह करा दो. और अगर एक फरीक दुसरे पर ज्यादती करे तो ज्यादती करने वाले से लड़ो यहाँ तक के वह खुदा के धर्म की तरफ रजूअ हो जाए तो दोनों फरीक में बराबरी के साथ सुलह करा दो और इन्साफ से काम लो की खुदा इन्साफ करने वालो को पसंद करता है.

मोमिन तो आपस में भाई भाई हैं, तो अपने २ भाइयों में सुलह करा दिया करो. और खुदा से डरते रहो, ताकि तुम पर रहमत की जाये.

मोमिनो कोई क़ोम का मजाक न उडाये. मुमकिन है की पे लोग उनसे बेहतर हों और न किसी औतातों का (मज़ाक उड़ायें) मुमकिन है की वे उनसे अच्छी हों और अपने (मोमिन भाई) को ऐब न लागोया और न एक दुसरे का बुरा नाम रखो. ईमान लाने के बाद बुरा नाम (रखना) गुनाह है, और जो टाबा न करे, वे ज़ालिम हैं.

ऐ ईमान लाने वालों! बहुत गुमान करने से बचो की कुछ गुमान गुनाह हैं और एक दुसरे की हाल की तोह मै न रहा करो और न कोई किसी की गीबत करें. क्या तुममे से कोई इस बात को पसंद करेगा की अपने मरे हुए भाई का गोस्त खाए? इस से तो तुम ज़रूर नफरत करोगे, (तो गीबत न करो) और खुदा का डर रखो बेशक खुदा तोबा कुबूल करने वाला मेहरबान है.
-कुरआन, सुरा ४९, आयत- ९, १०, ११, १२ 

मोमिनो! जब जुमा (शुक्रवार) के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दी जायेगी, तो खुदा की याद (नमाज़) के लिए जल्दी करो और (खरीदना व) बेचना छोड़ दो. अगर समझो तो यह तुम्हारे हक में बेहतर है.
-कुरआन, सुरा ६२, आयत- ९

मोमिनो!तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गए हैं, जिस तरेह तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किये गए थे, ताकि तुम परहेजगार बनो.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १८३

और जो कोई बुरा काम कर बैठे या अपने हक में ज़ुल्म कर ले, फिर खुदा से बख्शीश मांगे, तो खुदा को बख्शने वाला मेहरबान पायेगा.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- ११०

और खुदा और उस के रसूल के हुक्म पर चलो आपस मे झगडा न करना की (ऐसा करोगे तो) तुम बुजदिल हो जाओगे और तुम्हारा इकबाल जाता रहेगा और सब्र से काम लो की खुदा करने वाले मददगार है.
-कुरआन, सुरा ८, आयत- ४६

भाग ४.६


इस्लाम में आदर्श न्याय

इस्लाम की न्यायिक व्यवस्था दुनिया में सर्वोच्च है.
इस्लाम में दुश्मनों के साथ भी सच्चा न्याय करने का आदेश, न्याय के सर्वोच्च आदर्श को प्रस्तुत करता है इसे निचे दी गई आयत में देखिये:

ऐ ईमान वालों! खुदा के लिए इन्साफ की गवाही देने की लिए खड़े हो जाया करो ओर लोगों की दुश्मनी तुम को इस बात पर तैयार न करे की इन्साफ छोड़ दो. इन्साफ किया करो की यही परहेज़गारी की बात है और खुदा से डरते रहो.
कुछ शक नहीं की खुदा तुम्हारे तमाम कामो से खबरदार है.
-कुरआन, सुरा ५, आयत- ८

बदनाम किया जता है की इस्लाम में गैर मुसलमानों के साथ ही नहीं, दुश्मनों के साथ भी ज्यादती की मनाही है, इस्लाम में देखें:

और जो लोग तुमसे लड़ते हैं, तुम भी खुदा की राह में उनसे लड़ो, मगर ज्यादती न करना की खुदा ज्यादती करने वालों को दोस्त नहीं रखता.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १९०

इस्लाम में किसी निर्दोष की ह्त्या की इजाज़त नहीं है. ऐसा करने वालों की एक ही सज़ा है, खून के बदले खून. लेकिन यह सज़ा केवल कातिल को ही मिलनी चाहिए और इसमें ज्यादती मना है. इसे ही तो कहते हैं सच्चा इन्साफ. देखिये निचे दिया गया अल्लाह का यह आदेश:

और जिस जानदार का मारना खुदा ने हराम किया है, उसे क़त्ल न करना मगर जायज़ तोर पर (यानी शरियत के फतवे के मुताबिक) और जो शक्स ज़ुल्म से क़त्ल किया जाए, हम ने उसके वारिस को अख्तियार दिया है (की ज़ालिम कातिल से बदला ले) तो उस को चाहिए की क़त्ल (के किसास) में ज्यादती न करे की वह मंसूर व फतहयाब कई.
-कुरआन, सुरा १७, आयत- ३३

मोमिनो! तुमको मक्तूलों के बारे में किसास (यानी खून के बदले खून) का हुक्म दिया जाता है ( इस तरेह पर की) आज़ाद के बदले आज़ाद (मारा जाय) और गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत और अगर कातिल को उसके (मकतूल) भाई भाई (के किसास में) से कुछ माफ़ कर दिया जाए तो (वारिस मकतूल को) पसंदीदा तरीके से (क़रारदाद की) पैरवी तरीके से अदा करना चाहिए. यह परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे लिए आसानी और मेहरबानी है, जो इसके बाद ज्यादती करे, उसके लिए दू:ख का अज़ाब है.
-कुरआन, सुरा २, आयत-१७८

और ऐ अक्ल वालो! कशास (के हुक्म) में (तुम्हारी) जिंदगानी है की तुम (क़त्ल व खुरेजी से) बचो.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १७९

अगर किसी को वसीयत करने वाले की तरफ से (किसी वारिस की) तरफ दारी या हक्लात्फ़ी का डर हो तो अगर वह (वसीयत को बदल कर) वारिसो में सुलह करा दे, तो उस पर कुछ गुनाह नहीं. बेशक खुदा बख्शने वाला (और) रहम वाला है
-कुरआन, सुरा २, आयत- १८२

और जो चोरी करे, ओरत हो या मर्द,उसके हाथ काट डालो. यह उन फ़लों की सज़ा और खुदा की तरफ से सीख है और खुदा ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है.
-कुरआन, सुरा ५, आयत-३८

मोमिनो! तुमको जायज़ नहीं है की ज़बरदस्ती औरतों के वारिस बन जाओ और (देखना) इस नियत से की जो तुमने उनको दिया है उस में से कुछ लेलो, उन्हें (घरो में)मत रोक रखना. हाँ अगर वे खुले तोर पर बाद-कारी करें, (तो रोकना मुनासिब नहीं) और उनके साथ अछि तरह से रहोसहो. अगर वह तुम को ना-पसन् हो तो अजब नहीं की तुम किसी चीज़ को न-पसंद करो और खुदा उसमें बहुत-सी भलाई पैदा कर दे.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- १९

जो माल माँ-बाप और रिश्तेदार छोड़ मरे, थोड़ा हो या बहुत, उसमें मर्दों का भी हिसा है और ओर्तों का भी. ये हिस्से खुदा के मुक़र्रर किये हुए हैं.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- ७

इस्लाम की सर्वोत्तम न्यायिक व्यवस्था के कारण ही इस्लामिक देशो में (जहां यह व्यवस्था लागू है) क़त्ल, डकैती, राहजनी, बलात्कार, व्यभिचार और चोरी आदि नहीं है. दुनिया के लोग बड़े आश्चर्या से देखते हैं की दुबई, इरान, इराक, सौदी अरब, कुवैत आदि मुस्लिम देशों में जुमे की अजान होते ही दुकानदार अपनी-अपनी दुकानों में करोडो की कीमत का कुन्तलों सोना छोड़ कर नमाज़ पढने के लिए चल देते हैं. दूकान में किसी के न रहने पर भी कोई चोरी नहीं होती है.

आज सारी दुनिया में नोजवानो को अफीम से बनी नशीली दवाएं डस रही है, लेकिन यह इस्लामी न्यायिक व्यवस्था का ही कमाल है की इस्लामी न्याय प्रणाली लागू करने वाले देश इन सामजिक बुराइयों से बचे हैं.

भाग ४.७ :: इस्लाम में दुनिया का सर्वोच्च व्यावहारिक मानवीय आदर्श है

इस्लाम में दुनिया का सर्वोच्च व्यावहारिक मानवीय आदर्श है. देखें कुरआन मजीद की ये आयतें:

नेकी यह नहीं है की तुम पूरब या पश्चिम (को किब्ला समझ कर उन) की तरफ मुह कर लो, बल्कि नेकी यह है की लोग खुदा पर और फरिश्तों पर खुदा की किताब पर और पैग़म्बरों पर ईमान लायें और माल बावजूद अजीज़ रखने के रिश्तेदारों और यतीमो और मुह्ताजों और मुसाफिरों और मांगने वालों को दें और गर्दनो (को छुडाने) में* खर्च करें और नमाज़ पढ़ें और ज़कात दें और जब अह्द कर लें तो उसको पूरा करें और सख्ती और तकलीफ में और (लड़ाई के) मैदान में साबित कदम रहें. यही लोग है जो (ईमान में) सच्चे हैं और यही हैं जो (खुदा) से डरने वाले हैं
-कुरआन, सुरा २, आयत- १७७

और एक दुसरे का माल ना-हक न खाओ और न उसको (रिश्वत के तोर पर) हाकिमो के पास पहुचाओ ताकि लोगों के माल का कुछ हिस्सा नाजायज़ तोर पर न खा जाओ और (इसे) तुम जानते भी हो.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १८८

अगर तुम खैरात ज़ाहिर में दो तो वह भी खूब है, और अगर छिपे दो और दो भी ज़रूरतमंद को, तो यह खूबतर है और (इस तरह का देना) तुम्हारे गुनाहों को भी दूर कर देगा और खुदा को तुम्हारे कामो की खबर है.
-कुरआन, सुरा २, आयत- २७१

खुदा सूद (अर्थात ब्याज) को ना-बूद ( यानी बे-बरक़त) करता और खैरात (अर्थात दान) (की बरक़त) को बढ़ावा है और खुदा किसी ना-शुक्रे गुनाहगार को दोस्त नहीं रखता.
-कुरआन, सुरा २, आयत- २७६

मोमिनो! (अर्थात मुसलमानों!) खुदा से दरो और अगर ईमान रखते हो तो जितना सूद बाक़ी रह गया है, उस को छोड़ दो.

अगर एसा न करो, तो खबरदार हो जाओ (की तुम) खुदा और रसूल से जंग (अर्थात युद्ध) करने की लिए (तैयार होते हो) और अगर तोबा (अर्थात प्रयाश्चित) कर लोगे (और सूद छोड़ दोगे) तो तुम को अपनी असल रक़म लेने का हक है, जिस में न ओरों का नुक्सान, और न तुम्हारा नुकसान.

और अगर क़र्ज़ लेने वाला तंगदस्त हो तो (उसे) फराखी (के हासिल होने) तक मोहलत (दो) और (क़र्ज़ रक़म) बक्श ही दो, तो तुम्हारे लिए ज्यादा अच्चा है, बशर्ते की समझो.

और उस दिन से दरो, जबकि तुम खुदा के हुज़ूर में लोट कर जाओगे और हर सकस अपने आमाल का पूरा-पूरा बदला पायेगा और किसी का कुछ नुक्सान न होगा.
-कुरआन, सुरा २, आयत- २७८, २७९, २८०, २८१

(यह दुनिया का) थोड़ा सा फ़ायदा है, फिर (आखिरत में) तो उन का ठिकाना दोज़ख है और वह बुरी जगह है.
-कुरआन, सुरा ३, आयत- १९७

और यतीमों का माल (जो तुम्हारे कब्ज़े में हो) इनके हवाले कर दो और उनके पाकीज़ा (और उम्दा) माल को (अपने खराब और) बुरे माल से न बदलो और न उनका माल अपने माल में मिला कर खाओ की यह बड़ा सख्त गुनाह है.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- २

लोग यतीमो का माल नाजायज़ तोर पर खाते हैं, वे अपने पेट में आग भरते है और दोज़ख में डाले जायेंगे.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- १०

और यतीम के माल के पास भी न जाना, मगर इसे तरीके से की बहुत पसंदीदा हो, यहाँ तक की वह जवानी को पहुच जाए और नाप और तोल के साथ पूरी-पूरी किया करो. हम किसी को तकलीफ नहीं देते, मगर उस की ताकत के मुताबिक और जब (किसी के बारे में) कोई बात कहो, तो इन्साफ से कहो, गो वह (तुम्हारा) रिश्तेदार ही हो और खुदा के अह्द को पूरा करो. इन बातों का खुदा तुम्हे हुक्म देता है, ताकी तुम नसीहत करो.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- १५२

सड़के (यानी ज़कात व खैरात) मुलिसों और मुह्ताजो और सदकात के लिए काम करने वालों का हक है और उन लोगों का जिन के दिलों का रखना मंज़ूर है और गुलामो के आज़ाद कराने में और कर्जदारों (के क़र्ज़ अदा करने में) और खुदा की राह में और मुसाफिरों (की मदद) में (भी यह माल खर्च करना चाहिए. ये हुकूक) खुदा की तरफ से मुक़र्रर कर दिए गए है और खुदा जानने वाला (और) हिकमत वाला है.
-कुरआन, सुरा ९, आयत- ६०

और यतीम के माल के पास भी न फटकना, मगर इसे तरीके से की बहुत बेहतर हो, यहाँ तक की वह जवानी को पहुच जाए और अहद (वायदे) को पूरा करो की अहद के बारे में ज़रूर पूछ होगी.

और जब (कोई चीज़) नाप कर देने लगो, तो पैमाना पूरा भरा करो और (जब टोल कर दो, तो) तराजू सीधे रख कर तोला करो. यह बहुत अछि बात है और अंजाम के लिहाज से भी बहुत बेहतर है.

और (ऐ बन्दे!) जिस चीज़ का तुझे इल्म नहीं, उस के पीछे न पड़ की कान और आँख और दिल इन सब (अंगों) से ज़रूर पूछ-ताछ होगी.

और ज़मीन पर अकाद कर (पर तन कर) मत चल की तू ज़मीन को फाड़ तो नहीं डालेगा और न लंबा होकर पहाड़ों (की चोटी) तक पहुच जाएगा.

इन सब (आदतों) की बुराई तेरे परवरदिगार के नजदीक ब्शुत ना-पसंद है.
-कुरआन, सुरा १७, आयत- ३४, ३५, ३६, ३७, ३८

और किसी काम के बारे में न कहना की मई इसे कल कर दूंगा.
-कुरान, सुरा १८, आयत- २३

(ऐ पैग़म्बर!) कह दो की लोगों! मई तुम को खुल्लम-खुल्ला नसीहत करने वाला हूँ.

तो जो लोग ईमान लाये और नेक काम किये, उन के लिए बख्शीश और आबरू की रोज़ी है.

और जिन लोगों ने हमारी आयातों में (अपने झूठे गुमान में) हमें आजिज़ करने की लिए कोशिश की, वे दोज़ख वाले है.
-कुरआन, सुरा २२, आयत- ४९, ५०, ५१


*यहाँ 'गर्दनो को छुडाने में' का मतलब गुलामो को खरीद कर फिर उसे आज़ाद कर देने से है.

भाग ४.८

(देखो) पैमाना पूरा भरा करो और नुक्सान न किया करो.
और तराजू सीधे रख कर तोला करो.
लोगों को उन की चीज़ें कम का न दिया करो और मुल्क में फसाद न करते फिरो.
और उस से दरो, जिसने तुमको और पहली खलकत को पैदा किया
-कुरआन, सुरा २६, आयत- १८१, १८२,१८३, १८४

बेशक परहेजगार लोग अमन की जगह में होंगे.
(यानी) बाग़ों और चश्मों में,
हरीर का बारीक और दबीज़ (भारी) लिबास पहन कर एक-दुसरे के सामने बैठे होंगे.
(वहां) इस तरह (का हाल होगा) और हम बड़ी-बड़ी आखों वाली गोरे रंग की औरतों से उन के जोड़े लगायेंगे.
वहां अमन-सुकून स हर किस्म के मेवे मंगवाएंगे (और खायेंगे)
-कुरआन, सुरा ४४, आयत- ५१, ५२, ५३, ५४, ५५

शुरू खुदा का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु और अत्यंत दयालू है.
हर तानो भरे इशारे करने वाले चुगलखोर की खराबी है.
जो माल जमा करता है और उसको गिन गिन कर रखता है.
और ख्याल करता है की उसका माल उसकी हमेशा की ज़िन्दगी की वजेह होगा.
हरगिज़ नहीं, वह ज़रूर हुत्मा में डाला जाएगा. 
और तुम क्या समझे की हुत्मा क्या है?
वह खुदा की भड़काई हुई आग है,
जो दिलों पर जा लिप्तेगी,
और वे उसमें बंद कर दिए जायेंगे,
यानी (आग के) लम्बे लम्बे स्तूनो में.
-कुरआन, सुरा १०४, आयत- १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९ 

शुरू खुदा का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु, अत्यंत दयालु है.
ह्खा जो बदले (के दिन) को भला तुमने उस शक्स को देखा जो बदले (के दिन) को झुठलाता है.
यह वही (बाद-बख्त) है जो यतीम को धक्का देता है,
और फ़कीर को खाना खिलाने के लिए (लोगों को) तरगीब नहीं देता.
तो ऐसे नमाजियों की खराबी है,
जो नमाज़ की तरह से ग़ाफिल रहते हैं
जो दिखावे का काम करते हैं.
और बरतने की चीज़ें (उधार) नहीं देते.
-कुरआन, सुरा १०७, आयत- १, २, ३, ४, ५, ६,७

शुरू खुदा का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु, अत्यंत दयालू है.
कहो की मई सुबह के मालिक की पनाह माँगता हूँ,
हर छज की बुराई से, जो उसने पैदा की,
और अँधेरी रात की बुराई से जब उसका अन्धेरा छा जाए,
और गन्दो पर (पढ़-पढ़ कर) फूकने वालियों की बुराई से, 
और हसद (जलन) करने वालों की बुराई से, जब हसद करने लगे.
-कुरआन, सुरा ११३, आयत- १, २, ३, ४, ,५ 

शुरू खुदा का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु, अत्यंत दयालू है.
कहो की  मई लोगों के परवरदिगार की पनाह माँगता हूँ.
(यानी) लोगों के हकीकी बादशाह की,
लोगों के माबुदे बार-हक की,
(शैतान) वस्वसा डालने वाले की बुरे से जो (खुदा का नाम सुन कर) पीछे हट जाता है,
जो लोगों के दिलों में वास्वाने डालता है,
(चाहे वह) जिन्नों में से (हो) या इंसानों में से.
-कुरआन, सुरा ११४, आयत- १, २, ३, ४, ५, ६ 


भाग ४.९

पैग़म्बर हज़रात मुहम्मद (सल्ल०) की जीवनी, आप की कथनी और करनी तथा कुरआन मजीद में अल्लाह के आदेश ही इस्लाम है.
हमने कुरआन मजीद में अल्लाह के आदेह देख लिए, हजरत मुहम्मद (सल्ल०) की जीवनी देखली. अब अल्लाह से रसूल (सल्ल०) की कथनी (हदीस) देखिये:
हदीस की सभी किताबों में सबसे महत्वपूर्ण किताब 'बुखारी शरीफ' है. दी गई हदीसें 'बुखारी शरीफ' की हदीसों के हिंदी अनुवाद के उस संकलन से ली गई है जिसका प्रकाशन मुरीद बुक डिपो बाज़ार चितली कब्र, दिल्ली-६ ने व हिंदी अनुवाद श्री कोसर यजदानी नदवी नि किया है.

हजरत अनस बिन मालिक (रजि०) कहते हैं की हुज़ूर (सल्ल०) का कथन है  "अपने भाई की मदद करो चाहे वह ज़ालिम हो या मजलूम"
(आप से) अर्ज़ किया गया ,"ऐ रसूलुल्लाह (सल्ल०) ! मजलूम होने पर तो हम उसकी मदद कर सकते हैं, जालिम होने के वक़्त किस तरह मदद करें?" (हुज़ूर ने) फरमाया, "उसके हाथ पकड़ लो (यानी ज़ुल्म न करने दो)." हदीस १०४६ (पेज २७४)
-बुखारी शरीफ


हजरत जरीर बिन अब्दुल्लाह (रजि०) कहते हैं की हजरत मुहम्मद (सल्ल०) न तो बे-हया थे, ना गाली बकने वाले, न किसी पर लानत करने वाले, बल्की अगर आप को किसी पर गुस्सा आ जाता, तो यों फरमाते की "ए क्या हो गया! उस के सर पर खाक़ !"
हदीस १६८१ (पेज ४४९) - बुखारी शरीफ 

हजरत इब्ने उम्र (रजि०) कहते हैं की हजरत मुहम्मद रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने फरमाया "अगर मुसलमान किसी का हराम खून न बहाय, उस वक़्त तक उस दिन में फैलाव और ज्यादती ही होती रहेगी."
हदीस १६९३ (पेज ४५१) - बुखारी शरीफ

हजरत इब्ने अब्बास (रजि०) कहते हैं की नबी (सल्ल०) ने फरमाया "सभी जानदारों में अल्लाह तआला को ३ शक्स बुरे मालूम होते हैं'- मुल्के हरम में जुल्म करने वाला, दुसरा इस्लाम में जहालियत का तरीका अख्तियार करने वाला, तीसरा नाहक खून का चाहने वाला."
हदीस १६९७ (पेज ४५२) - बुखारी शरीफ

हजरत अबू हुर्रैरह (रजि०) कहते हैं की नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया की "जल्द ही तुमको अमारत की लालच होगी, लेकिन वह कियामत की दिन पछताने का ज़रिया होगा, उसकी शुरुआत तो अच्छी मालूम होगी, लेकिन अंजाम बुरा होगा."
हदीस १७२५ (पेज ४५८) - बुखारी शरीफ़

हजरत माकल बिन यासर (रजि०) कहते हैं की नबी (सल्ल०) ने फरमाया, "जो हाकिम अपनी रिआया (यानी प्रजा) का बुरा चाहने वाला होकर मर जाएगा, तो अल्लाह ताआला उसपर जन्नत हराम कर देगा"
हदीस १७२७ (पेज ४५८) - बुखारी शरीफ़ 

हजरत अबुबकर (रजि०) कहते हैं की हजरत मुहम्मद रसूलल्लाह (सल्ल०) ने फरमाया की, "हाकिम को चाहिए की गुस्से की हालत में किसी का फैसला न करे."
हदीस १७२९ (पेज ४५८) - बुखारी शरीफ़ 

हजरत आयशा (रजि०) फरमाती है की हुज़ूर (सल्ल०) का इरशाद है की "अल्लाल ताआला के नजदीक सबसे ज्यादा बुरा हमेशा लड़ने-झगड़ने वाला आदमी है."
हदीस १७३० (पेज ४५८) - बुखारी शरीफ़ 

हजरत अब्दुल्लाह (रजि०) कहते हैं की नबी (सल्ल०) ने फरमाया की "जब तुम तीन आदमी हो, तो दो आदमी आपस में कानाफूसी न करें, जब तक (एक) न हो जाएँ, क्योँ की यह कानाफूसी तीसरे को दू:खी बनाती है."
हदीस १७३७ (पेज ४५९) - बुखारी शरीफ़

हज्तर अब्दुल्लाह बिन उम्र (रजि०) कहते हैं की एक शख्स ने नबी(सल्ल०) से पूछा की कों इस्लाम बेहतर है? (हुजूर ने) फरमाया, "लोगो को खाना खिलाना और जान-पहचान और गैर जान-[एह्चान, दोनों को सलाम करना."
हदीस १८०४ (पेज ४७१) - बुखारी शरीफ़

एक व्यक्ति ने पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल०) से कहा - "काफिरों के विरुद्ध से दुआ कीजिये, उन्हें लानत भेजिए." इस पर आप (सल्ल०) ने कहा: "मुझे दुनिया में दया के लिए भेजा गया है, लानत देने के लिए नहीं."
-मुस्लिम

पैग़म्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल०) की कथनी और करनी (यानी हदीस) से, आप की जीवनी से तथा कुरआन मजीद में अल्लाह की आयतें (जो भाग २, ३ व ४ में दीगई हैं) के विस्तृत अध्यन से पाठक स्वयं देख सकते हैं की इस्लाम ने शान्ति, दया व मानवता के उच्च व्यावहारिक आदर्शों को स्थापित किया.

दुनिया में केवल कुरआन मजीद में ही ईश्वरीय (यानी आध्यात्मिक) सत्य के साथ-साथ व्यावहारिक सत्य भी हैं. अपनी इसी विशषता के कारण मक्का में प्रकट हुआ इस्लाम, साड़ी दुनिया में छा गया.

इसके बाद भी यदि कोई कुरआन मजीद में अल्लाह के इन आदेशों का गलत या मनचाहा अर्थ निकालता है तो इसके लिए कुरआन मजीद या इस्लाम ज़िम्मेदार नहीं है.

साथ ही पाठक यह भी निर्णय ले सकते हैं की सलमान रश्दी, अनवर शेख और तसलीमा नसरीन जैसे लेखकों ने पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर ही कुरआन मजीद की आयातों को आतंकवाद से जोड़ा.

इससे स्वयं सिद्ध होता है की इस्लाम में कहीं भी आतंकवाद का आदेश नहीं, बल्कि आतंक का ही विरोध है और जिहाद, आतंक नहीं बल्कि आत्मरक्षा के लिए, आतंकवाद के विरोध का प्रयास है.

जैसे मैंने अपनी पुस्तक 'इस्लामिन आतंकवाद का इतिहास' में हिन्दू राजाओं व मुस्लिम बादशाहों के बीच युद्ध में हुए खून खराबे ला उल्लेख लिया था. उसके बारे में अब मेरी समझ में आया है की वह खून-खराबा युद्ध का था, व्यक्ति विशेष का था, न की इस्लाम का. युद्ध में ऐसे खून-खराबे हर देश में, हर कओम में सदैव से होते रहे हैं. जिनसे- इतिहास में सिकंदर से हिटलर तक यही करते रहे हैं. अपने देश भारत में अशोक कलिंग विजय अभियान में एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे. इस के इन आतंकवादी कार्यों के लिए इन का धर्म दोषी नहीं है. इसी तरह मुस्लिम बादशाहों के लिए भी ऐसा ही है.

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