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भाग ४.७ :: इस्लाम में दुनिया का सर्वोच्च व्यावहारिक मानवीय आदर्श है

इस्लाम में दुनिया का सर्वोच्च व्यावहारिक मानवीय आदर्श है. देखें कुरआन मजीद की ये आयतें:

नेकी यह नहीं है की तुम पूरब या पश्चिम (को किब्ला समझ कर उन) की तरफ मुह कर लो, बल्कि नेकी यह है की लोग खुदा पर और फरिश्तों पर खुदा की किताब पर और पैग़म्बरों पर ईमान लायें और माल बावजूद अजीज़ रखने के रिश्तेदारों और यतीमो और मुह्ताजों और मुसाफिरों और मांगने वालों को दें और गर्दनो (को छुडाने) में* खर्च करें और नमाज़ पढ़ें और ज़कात दें और जब अह्द कर लें तो उसको पूरा करें और सख्ती और तकलीफ में और (लड़ाई के) मैदान में साबित कदम रहें. यही लोग है जो (ईमान में) सच्चे हैं और यही हैं जो (खुदा) से डरने वाले हैं
-कुरआन, सुरा २, आयत- १७७

और एक दुसरे का माल ना-हक न खाओ और न उसको (रिश्वत के तोर पर) हाकिमो के पास पहुचाओ ताकि लोगों के माल का कुछ हिस्सा नाजायज़ तोर पर न खा जाओ और (इसे) तुम जानते भी हो.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १८८

अगर तुम खैरात ज़ाहिर में दो तो वह भी खूब है, और अगर छिपे दो और दो भी ज़रूरतमंद को, तो यह खूबतर है और (इस तरह का देना) तुम्हारे गुनाहों को भी दूर कर देगा और खुदा को तुम्हारे कामो की खबर है.
-कुरआन, सुरा २, आयत- २७१

खुदा सूद (अर्थात ब्याज) को ना-बूद ( यानी बे-बरक़त) करता और खैरात (अर्थात दान) (की बरक़त) को बढ़ावा है और खुदा किसी ना-शुक्रे गुनाहगार को दोस्त नहीं रखता.
-कुरआन, सुरा २, आयत- २७६

मोमिनो! (अर्थात मुसलमानों!) खुदा से दरो और अगर ईमान रखते हो तो जितना सूद बाक़ी रह गया है, उस को छोड़ दो.

अगर एसा न करो, तो खबरदार हो जाओ (की तुम) खुदा और रसूल से जंग (अर्थात युद्ध) करने की लिए (तैयार होते हो) और अगर तोबा (अर्थात प्रयाश्चित) कर लोगे (और सूद छोड़ दोगे) तो तुम को अपनी असल रक़म लेने का हक है, जिस में न ओरों का नुक्सान, और न तुम्हारा नुकसान.

और अगर क़र्ज़ लेने वाला तंगदस्त हो तो (उसे) फराखी (के हासिल होने) तक मोहलत (दो) और (क़र्ज़ रक़म) बक्श ही दो, तो तुम्हारे लिए ज्यादा अच्चा है, बशर्ते की समझो.

और उस दिन से दरो, जबकि तुम खुदा के हुज़ूर में लोट कर जाओगे और हर सकस अपने आमाल का पूरा-पूरा बदला पायेगा और किसी का कुछ नुक्सान न होगा.
-कुरआन, सुरा २, आयत- २७८, २७९, २८०, २८१

(यह दुनिया का) थोड़ा सा फ़ायदा है, फिर (आखिरत में) तो उन का ठिकाना दोज़ख है और वह बुरी जगह है.
-कुरआन, सुरा ३, आयत- १९७

और यतीमों का माल (जो तुम्हारे कब्ज़े में हो) इनके हवाले कर दो और उनके पाकीज़ा (और उम्दा) माल को (अपने खराब और) बुरे माल से न बदलो और न उनका माल अपने माल में मिला कर खाओ की यह बड़ा सख्त गुनाह है.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- २

लोग यतीमो का माल नाजायज़ तोर पर खाते हैं, वे अपने पेट में आग भरते है और दोज़ख में डाले जायेंगे.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- १०

और यतीम के माल के पास भी न जाना, मगर इसे तरीके से की बहुत पसंदीदा हो, यहाँ तक की वह जवानी को पहुच जाए और नाप और तोल के साथ पूरी-पूरी किया करो. हम किसी को तकलीफ नहीं देते, मगर उस की ताकत के मुताबिक और जब (किसी के बारे में) कोई बात कहो, तो इन्साफ से कहो, गो वह (तुम्हारा) रिश्तेदार ही हो और खुदा के अह्द को पूरा करो. इन बातों का खुदा तुम्हे हुक्म देता है, ताकी तुम नसीहत करो.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- १५२

सड़के (यानी ज़कात व खैरात) मुलिसों और मुह्ताजो और सदकात के लिए काम करने वालों का हक है और उन लोगों का जिन के दिलों का रखना मंज़ूर है और गुलामो के आज़ाद कराने में और कर्जदारों (के क़र्ज़ अदा करने में) और खुदा की राह में और मुसाफिरों (की मदद) में (भी यह माल खर्च करना चाहिए. ये हुकूक) खुदा की तरफ से मुक़र्रर कर दिए गए है और खुदा जानने वाला (और) हिकमत वाला है.
-कुरआन, सुरा ९, आयत- ६०

और यतीम के माल के पास भी न फटकना, मगर इसे तरीके से की बहुत बेहतर हो, यहाँ तक की वह जवानी को पहुच जाए और अहद (वायदे) को पूरा करो की अहद के बारे में ज़रूर पूछ होगी.

और जब (कोई चीज़) नाप कर देने लगो, तो पैमाना पूरा भरा करो और (जब टोल कर दो, तो) तराजू सीधे रख कर तोला करो. यह बहुत अछि बात है और अंजाम के लिहाज से भी बहुत बेहतर है.

और (ऐ बन्दे!) जिस चीज़ का तुझे इल्म नहीं, उस के पीछे न पड़ की कान और आँख और दिल इन सब (अंगों) से ज़रूर पूछ-ताछ होगी.

और ज़मीन पर अकाद कर (पर तन कर) मत चल की तू ज़मीन को फाड़ तो नहीं डालेगा और न लंबा होकर पहाड़ों (की चोटी) तक पहुच जाएगा.

इन सब (आदतों) की बुराई तेरे परवरदिगार के नजदीक ब्शुत ना-पसंद है.
-कुरआन, सुरा १७, आयत- ३४, ३५, ३६, ३७, ३८

और किसी काम के बारे में न कहना की मई इसे कल कर दूंगा.
-कुरान, सुरा १८, आयत- २३

(ऐ पैग़म्बर!) कह दो की लोगों! मई तुम को खुल्लम-खुल्ला नसीहत करने वाला हूँ.

तो जो लोग ईमान लाये और नेक काम किये, उन के लिए बख्शीश और आबरू की रोज़ी है.

और जिन लोगों ने हमारी आयातों में (अपने झूठे गुमान में) हमें आजिज़ करने की लिए कोशिश की, वे दोज़ख वाले है.
-कुरआन, सुरा २२, आयत- ४९, ५०, ५१


*यहाँ 'गर्दनो को छुडाने में' का मतलब गुलामो को खरीद कर फिर उसे आज़ाद कर देने से है.

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