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भाग २.२ :: सत्य के लिए कष्ट सहने वाले, लड़ने-मरने वाले इश्वर की कृपा के पात्र होंगे, उस के प्रिये होंगे

सत्य के लिए कष्ट सहने वाले, लड़ने-मरने वाले इश्वर की कृपा के पात्र होंगे, उस के प्रिये होंगे :

तो परवरदिगार ने उन की दुआ क़ुबूल कर ली। ( और फ़रमाया ) की मैं किसी अमल करने वाले को, मर्द हो या औरत ज़ाया नहीं करता। तुम एक दुसरे की जींस हो , तो जो लोग मेरे लिए वतन छोड़ गए और अपने घरों से निकले गये और सताये गये और लड़े और क़त्ल किये गये में उनके गुनाह दूर कर दूंगा. और उनको बहिश्तों में दाख़िल करूंगा, जिनके नीचे नहरें बह रही हैं. ( यह ) ख़ुदा के यहां से बदला है और ख़ुदा के यहां अच्छा बदला है.
-क़ुरआन , सूरा ३, आयत-१९५

इस्लाम को बदनाम करने के लिए लिख-लिख कर प्रचारित किया गया की इस्लाम तलवार के बल पर प्रचारित व प्रसारित मज़हब है. मक्का सहित सम्पूर्ण अरब व दुनिया के अधिकांश मुस्लमान,तलवार के जोर पर ही मुस्लमान बनाए गये थे इस तरह इस्लाम का प्रसार जोर-ज़बरदस्ती से हुआ.
जबकि इस्लाम में किसी को जोर ज़बरदस्ती से मुस्लमान बनाने की सख्त मनाही है. क़ुरआन माजिद में अल्लाह के ये आदेश :
और अगर तुम्हारा परवरदिगार ( यानि अल्लाह ) चाहता, तो जितने लोग ज़मीं पर हैं, सब के सब इमा ले आते. तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो की वे मोमिन ( यानि मुस्लमान ) हो जाएं.
-क़ुरआन, सूरा 10 , आयत-99

'शुरू अल्लह का नाम लेकर, जो बड़ा कृपालु, अत्यंत दयालु है.'
( ऐ पैग़म्बर ! इस्लाम के इन नास्तिकों से ) कह दो कि ऐ काफ़िरों ! ( 1 )
जिन ( बुतों ) को तुम पूजते हो, उन को मैं नहीं पूजता , ( 2 )
और जिस ( ख़ुदा ) की मैं इबादत करता हूँ, उस की तुम इबादत नहीं करते, ( 3 )
और ( मैं फिर कहता हूँ कि ) जिन की तुम पूजा करते हो, उन की मैं पूजा नहीं करने वाला हूँ. ( 4 )
और न तुम उसकी बंदगी करने वाले ( मालूम होते ) हो, जिसकी मैं बंदगी करता हूँ. ( 5 )
तुम अपने दीन पर, मैं अपने दीन पर. ( 6 )
-क़ुरआन , सूरा १०९, आयत-१-६

ऐ पैग़म्बर ! अगर ये लोग तुमसे झगड़ने लगें, तो कहना कि मैं और मेरी पैरवी करने वाले तो ख़ुदा के फ़रमाँबरदार ( अथार्त आज्ञाकारी ) हो चुके और अहले किताब और अन-पढ़ लोगों से कहो कि क्या तुम भी ( ख़ुदा के फ़रमाँबरदार बनते और ) इस्लाम लाते हो ? अगर ये लोग इस्लाम ले आयें तो बेशक हिदायत पा लें और अगर ( तुम्हारा कहा ) न मानें, तो तुम्हारा काम सिर्फ ख़ुदा का पैग़ाम पहुंचा देना है. और ख़ुदा ( अपने ) बन्दों को देख रहा है.
-क़ुरआन , सूरा ३, आयात-२०

कह दो कि ऐ अहले किताब ! जो बात हमारे और तुम्हारे दरमियां एक ही ( मान ली गयी ) है , उसकी तरफ़ आओ, वह यह कि ख़ुदा के सिवा किसी की पूजा न करें और उसके साथ किसी चीज़ को शरीक ( यानि साझी ) न बनायें और हममें से कोई किसी को ख़ुदा के सिवा अपना करसाज़ न समझे. अगर ये लोग ( इस बात को ) न मानें तो ( उनसे ) कह दो कि तुम गवाह रहो कि हम ( ख़ुदा के ) फ़रमाँबरदार हैं.
-क़ुरआन , सूरा 3 , आयात-64

इस्लाम में , ज़ोर ज़बरदस्ती से धर्म परिवर्तन कि मनाही के साथ-साथ इससे भी आगे बढ़ कर किसी भी प्रकार कि ज़ोर-ज़बरदस्ती कि इजाज़त नहीं है. देखिये अल्लाह का यह आदेश :

दीं-ए-इस्लाम में ज़बरदस्ती नहीं है.
-क़ुरआन , सूरा २, आयात- २५६

हाँ, जो बुरे काम करे और उसके गुनाह ( हर तरफ़ से ) उसको घेर लें तो ऐसे लोग दोज़ख ( में जाने ) वाले हैं. ( और ) हमेशा उसमें ( जलते ) रहेंगे.
-क़ुरआन , सूरा २, आयात- ८१

निष्कर्ष- पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवनी व कुरआन मजीद की आयतों को देखने के बाद स्पष्ट है की हज़रत मुहम्मद ( सल्ल० ) की करनी और कुरआन की कथनी में कहीं भी आतंकवाद नहीं है.
इससे सिद्ध होता है की इस्लाम की अधूरी जानकारी रखने वाले ही अज्ञानता के कारन इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ते हैं.

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