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भाग १.५

मक्के में कुरैश को जब ताइफ़ का सारा हाल मालूम हुआ तो वे बड़े खुश हुए और आप की खूब हंसी उड़ाई. उन्होंने आपस में तय कर लिया की मुहम्मद अगर वापस लौट कर मक्का आये तो उनका क़त्ल कर देंगे.

आप(सल्ल०) ताइफ़ से मक्का के लिए रवाना हुए. हीरा नामक स्थान पर पहुचे तो वहां पर कुरैश के कुछ लोग मिल गए. ये लोग आप(सल्ल०) के हमदर्द थे. उनसे मालूम हुआ कि कुरैश आप का क़त्ल करने को तैयार बैठे हैं.

अल्लाह के रसूल अपनी बीवी खदीजा के एक रिश्तेदार अदि के बेटे मूतइम की पनाह में मक्का दाखिल हुए. चूंकि मूतइम आपको पनाह दे चके थे, इसलिए कोइ कुछ बोला लेकिन आप(सल्ल०) जब काबा पहुचे, तो अबू-जाहल ने आप की हंसी उड़ाई.

आपने लगातार अबू-ज़हल के दुर्व्यवहार को देखते हुए पहली बार उसे सख्त चेतावनी दी और साथ ही कुरैश सरदारों को भी अंजाम भुगतने को तैयार रहने को कहा.

इसके बाद अल्लाह के रसूल(सल्ल०) ने अरब के अन्य कबीलों को इस्लाम कि और बुलाना शुरू करदिया. इससे मदीना में इस्लाम फैलने लगा.

मदीना वासियों ने अल्लाह के रसूल की बातों पर ईमान (विश्वास) लाने के साथ आप(सल्ल०) कि सुरक्षा करने कि भी प्रतिज्ञा कि. मदीना वालों ने आपस में तय कर लिया कि इसबार जब हज करने मक्का जायेंगे, तो अपने प्यारे रसूल(सल्ल०) को मदीना आने का निमंत्रण देंगे.

जब हज का समय आया तो मदीने से मुसलमानों और गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला हज करने के लिए मक्का के लिए चला. मदीना के मुसलमानों कि आप(सल्ल०) से काबा में मुलाकात हुई. इनमे से ७५ लोगों ने जिनमे से २ औरतें भी थीं पहले से तय कि हुई जगह पर रात में फिर अल्लाह के रसूल से मुलाक़ात कि. अलाह के रसूल (सल्ल०) से बातचीत करने के बाद मदीना वालों ने सत्य कि और सत्य को बताने वाले अल्लाह से रसूल(सल्ल०) कि रक्षा करने कि बैयत(प्रतिजा) ली.

रात में हुई प्रतिजा कि पूरी खबर कुरैश को मिल गई थी. सुबह कुरैश को जब पता चल कि मदीना वाले निकल गए तो उन्होंने उनका पीछा किया पर वे पकड़ में न आये. लेकिन उनमे से एक व्यक्ति सअद (रजि०) पकड़ लिए गए. कुरैश उन्हें मारते पीटते बाल पकड़ कर घसीटते  हुए मक्का लाये.

मक्का में मुसलमानों के लिए कुरैश के अत्याचार असहनीय हो चुके थे. इससे आप(सल्ल०) ने मुसलमानों को मदीना चले जाने (हिजरत)  के लिए कहा और हिदायत दी कि एक एक, दो दो करके निकालो ताकि कुरैश तुम्हारा इरादा भांप सकें. मुसलमान चोरी चोरी-छिपे मदीने कि और जाने लगें. अधिकाँश मुसलमान निकल गयेलेकिन कुछ कुरैश कि पकड़ में आगये और कैद कर लिए गए. उन्हें बड़ी बेरहमी से सताया गया ताकि वे मुहम्मद(सल्ल०) के बताये धर्म को छोड़ कर अपने बाप-दादा के धर्म में लौट आयें.

अब मक्का में इन बंदी मुसलमानों के अलावा अल्लाह के रसूल (सल्ल०), अबू-बक्र (रजि०) और अली(रजि०) ही बचे थे, जिन पर काफिर कुरैश घात लगाए बैठे थे.

मदीना के लिए मुसलमानों कि हिजरत से यह हुआ कि मदीना में इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरू हो गया. लोग तेज़ी से मुसलमान बन्ने लगे.

मुसलमानों का जोर बढ़ने लगा. मदीना में मुसलमानों किबध्ती ताकत देख कर कुरैश चिंतिति हुए. अतः एक दिन कुरैश अपने मंत्रणा गृह 'दारुन्दावा' में जमा हुए. यहाँ सब ऐसी तरकीब सोचने लगे जिससे मुहमद का खात्मा हो जाए और इस्लाम का प्रवाह रुक जाए. अबू-ज़हल के प्रस्ताव पर सब कि राय से तय हुआ कि प्रत्येक कबीले से एक-एक व्यक्ति को लेकर एक साथ मुहम्मद पर हमला बोलकर उनकी कि ह्त्या कर दी जाए.  इससे मुहम्मद के परिवार वाले तमाम सम्मिलित कबीलों का मुकाबला नहीं कर पायेंगे और समझोता करने को मजबूर हो जायेंगे.

फिर पहले से तय हुई रात को काफिरों ने ह्त्या के लिए मुहम्मद(सल्ल०) के घर को हर तरफ से घेर लिया जिससे कि मुहम्मद(सल्ल०)  के बहार निकलते ही आप कि ह्त्या कर दें. लेकिन अल्लाह ने इस खतरे से आप(सल्ल०) को सावधान करदिया. आप(सल्ल०) ने अपने चचेरे भाई अली(सल्ल०) जो आपके ही साथ रहते थे, से कहा:- 

"अली! मुझ को अल्लाह से हिजरत का आदेश मिल चुका है. काफिर हमारी ह्त्या के लिए हमारे घर को घेरे हुए हैं. मई मदीना जा रहा हूँ, तुम मेरी चादर ओढ़ कर सो जाओ, अल्लाह तुम्हारी रक्षा करेगा, बाद में तुम भी मदीना चले आना."

हज़रात मुहम्मद (सल्ल०) अपने प्रिय साथी अबू-बक्र (रजि०) के साथ मदीना के लिए निकले. मदीना, मक्का से उत्तर दिशा कि और है, लेकिन दुश्मनों को धोखे में रखने के लिए आप(सल्ल०) मक्का से दक्षिण दिशा में यमन के रास्ते पर सोर कि गुफा में पहुचे. ३ दिन उसी गुफा में ठहरे रहे. जब आप (सल्ल०) व हज़रात अबू-बक्र (रजि०) कि तलाश बंद हो गई तब आप(सल्ल०) व अबू-बक्र (रजि०) गुफा से निकल कर मदीना कि और चल दिए.

कई दिन रात चलने के बाद २४ सितम्बर ६२२ ई० को मदीना से पहले कुबा नाम की बस्ती में पहुचे जहाँ मुसलमानों के कई परिवार आज़ाद थे. यहाँ आपने एक मस्जिद कि बुनियाद डाली, जो 'कुबा मस्जिद' के नाम से प्रसिद्ध है. यहीं पर अली(रजि०)  की आप (सल्ल०) से मुलाक़ात हो गई. कुछ दिन यहाँ ठहेरने के बाद आप(सल्ल०) मदीना पहुचे. मदीना पहुचने पर आप (सल्ल०) का सब ओर भव्या हार्दिक स्वागत हुआ.

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