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भाग १.६

अलाह के रसूल (सल्ल०) के मदीना पहुचने के बाद वहां एकेश्वरवादी सत्य-धर्म इस्लाम बड़ी तेज़ी से बढ़ने लगा. हर कोई 'ला इला-ह इलाल्लाह मोहम्मदउर्सूलाल्लाह' यानी 'अलाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्ल०) अल्लाह के रसूल हैं.' की गूँज सुनाई देने लगी.

काफिर कुरैश, मुनाफिकों (यानी कपटाचारीयों) की मदद से मदीना की खबर लेते रहते. सत्य इस्लाम का प्रवाह रोकने के लिए, अब वे मदीना पर हमला करने की यौज्नाये बनाने लगे.

एक तरफ कुरैश लगातार कई सालों से मुसलमानों पर हर तरह के अत्याचार करने के साथ साथ उन्हें नाश्ता करने पर उतारू थे वहीँ दूसरी तरफ आप(सल्ल०) पर विश्वास लाने वालों(यानी मुसलमानों) को अपना वतन छोड़ना पड़ा, अपनी दोलत, जायदाद छोडनी पड़ी. इसके बाद भी मुसलमान सब्र का दामन थामे ही रहे. लेकिन अत्याचारियों ने मदीना में भी उनको पीछा न छोड़ा और एक बड़ी सेना के साथ मुसलमानों पर हमला कर दिया.

जब पानी सर से ऊपर हो गया तब अल्लाह ने भी मुसलमानों को लड़ने की इजाज़त देदी. अल्लाह का हुक्म आ पहुचा- 

कुरआन, सुरा २२, आयत ३९-

"जिन मुसलमानों से (खामखाह) लड़ाई की जाती है, उन को इजाज़त है (की वे भी लड़ें), क्योंकि उनपर ज़ुल्म हो रहा हैऔर खुदा(उनकी मदद करेगा, वह) यकीनन उनकी मदद पर कुदरत रखता है."

असत्य के लिए लड़ने वाले अत्याचारियों से युद्ध करने का आदेश अल्लाह की और से आचुका था. मुसलमानों को भी सत्य-धर्म इस्लाम की रक्षा के लिए तलवार उठाने की इजाज़त मिल चुकी थी. अब जिहाद (यानी की असत्य और आतंकवाद के विरोध के लिए प्रयास अर्थात धर्मयुद्ध) शुरू हो गया.

सत्य की स्थापना के लिए और अन्याय, अत्याचार तथा आतंक की समाप्ति के लिए किये गए जिहाद में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की विजय होती रही. मक्का व आसपास के काफ़िर मुशरिक औंधे मुह गिरे.

इसके बाद पैगम्बर मोहम्मद(सल्ल०) १०,००० मुसलमानों की सेना के साथ मक्का में असत्य व आतंकवाद की जड़ को समाप्त करने के लिए चले. अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की सफलताओं और मुसलमानों की अपार शक्ति देख मक्का के काफ़िरो ने हथियार दाल दिए. बिना किसी खून खराबे के मक्का फ़तेह कर लिया गया. इस तरह सत्य और शांति की जीत तथा असत्य और आतंकवाद की हार हुई.

मक्का, वही मक्का जहाँ कल अपमान था, आज स्वागत हो रहा था. उदारता और दयालुता की मूर्ति बने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने उन सभी लोगों को माफ़ करदिया जिन्होंने आप और मुसलमानों पर बेदर्दी से ज़ुल्म किया ताथापना वतन छोड़ने को मजबूर किया था. आज वे ही मक्का वाले अल्लाह के रसूल के सामने ख़ुशी से कह रहे थे-
"ला इला-ह इल्लाह मुहम्म्दुर्र्सूलाल्लाह"
और झुण्ड के झुण्ड प्रतिजा कर रहे थे:
"अशहदु अल्ला इलाहू इल्लालाहू व अशहदु अन्न मुहम्म्दुर्र्सूलाल्लाह" (मई गवाही देता हूँ की अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं हैऔर मई गवाही देता हूँ की मुहम्मद(सल्ल०) अल्लाह के रसूल हैं.

हज़रात मुहम्मद(सल्ल०) की पवित्र जीवनी पढने के बाद मैंने पाया की आप(सल्ल०) ने एकेश्वरवाद के सत्य को स्थापित करने के लिए अपार कष्ट झेले हैं.

मक्का के काफिर सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालने के लिए आप को तथा आपके बताये सत्य पर चलने वाले मुसलमानों को लगातार १३ साल तक हर तरह से प्रताड़ित व अपमानित करते रहे. इस घोर अत्याचार के बाद भी आप(सल्ल०) ने धैर्य बनाए रखा. यहाँ तक की आप को अपना वतन मक्का छोड़ कर मदीना जाना पडा. लेकिन मक्का के मुशरिक कुरैश ने आप(सल्ल०) का व मुसलमानों का पीछा यहाँ भी नहीं छुड़ा. जब पानी सर के ऊपर हो गया तो अपनी व मुसलमानों की तशा सत्य की रक्षा के लिए मजबूर होकर आप को लड़ना पडा. इस तरेह आप पर व मुसलमानों पर लड़ाई थोपी गई.

इन्ही परिस्थितियों में सत्या की रक्षा के लिए जिहाद(यानी आत्मरक्षा के लिए धर्मयुद्ध) की आयतें और अन्यायी तथा अत्याचारी काफिरों व मुशरिकों को दंड देने वाली आयतें अल्लाह की और से आप(सल्ल०) पर आसमान से उतरीं.

पैगम्बर हज़रात मोहम्मद(सल्ल०) द्वारा लड़ी गई लडाइयां आक्रमण के लिए न होकर, आक्रमण व आतंकवाद से बचाव के लिए थीं, क्यों की अत्याचारियों के साथ ऐसा किये बिना शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती थी.

अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने सत्य तथा तथा शान्ति के लिए अंतीं सीमा तक धैर्य रखा और धैर्या की अंतिम सीमा से युद्ध की शुरुवात होती है. इस प्रकार का युद्ध ही धर्मयुद्ध (यानी जिहाद) कहलाता है.

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है की कुरैश जिन्होंने आप व मुसलमानों पर भयानक अत्याचार किये थे, फतह मक्का (यानी मक्का विजय) के दिन वे थर ठाट कांप रहे थे की आज क्या होगा? लेकिन आप(सल्ल०) ने उन्हें माफ़ कर गले लगा लिया.

 पैगम्बर hazrat मोहम्मद (सल्ल०) की इस पवित्र जीवनी से सिद्धे होता है की इस्लाम का अंतिम उद्येश्य दुनिया में सत्या और शान्ति की स्थापना और आतंकवाद का विरोध है.

अतः इस्लाम को हिंसा व आतंक से जोड़ना सबसे बड़ा असत्य है. यदि कोई ऐसी घटना होती है तो उसको इस्लाम से या संपूर्ण समुदाय से जोड़ा निः जा सकता.

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