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भाग १.४


हमने उस पैगाम को व उस को अच्चा जाना और उस पर ईमान यानी की विश्वास लाकर मुस्लमान बन गए.

हज़रात जाफर (रजि०) के जवाब से बादशाह नज्ज़शी बहुत प्रभावित हुआ. उसने दूतों को यह कह कर वापस करदिया की ये लोग अब यहीं रहेंगे.

मक्का में खत्ताब के पुत्र उम्र बड़े ही क्रोधी किन्तु बड़े बहादुर साहसी योद्धा थे. अल्लाह के रसूल (सल्ल०)ने अलाह से प्रार्थना की कि यदि उम्र ईमान लाकर मुसलमान बन जाएँ तो इस्लाम को बड़ी ही मदद मिले, लेकिन उम्र मुसलमानों के लिए बड़े ही निर्दयी थे. जब उन्हें ये मल्लों हुआ कि नज्ज़शी ने मुसलमानों को अपने यहाँ शरण दे दी है तो वह बहुत क्रोधित हुए. उम्र ने सोचा सारे फसाद कि जड़ मोहम्मद ही है, अब न उसे ही मार कर फसाद कि जड़ ही समाप्त कर दूंगा.

ऐसा सोच कर, उम्र तलवार उठा कर चल दिए. रास्ते में उनकी भेंट नुईम-बिन-अब्दुल्लाह से होगी जो पहले ही मुसलमान बन चुके थे, लेकिन उम्र को यह पता नहीं था. बातचीत में जब नुएम को पता चला कि उम्र, अल्लाह से रसूल (रजि०) का क़त्ल करने जा रहा है तो उन्होंने उम्र के इरादे का रुख बदलने को कहा: "तुम्हारी बाहें-बहेनोई मुसलमान हो गए हैं, पहले उनसे निबटो."

यह सुनते ही कि उनकी बाहें और बहनोई और मुहम्मद का दीं इस्लाम कबूल कर मुसलमान बन चुके हैं, उम्र गुस्से से पागल हो गए और सीधा बाहें के घर जा पहुचे.

भीतर से कुछ पढने कि आवाज़ आरही थी. उस समय खाब्बाब(रजि०) कुरआन पढ़ रहे थे. उम्र कि आवाज़ सुनते ही वे डर के आरे अन्दर छिप गए. कुरआन के जिन पन्नो को वो पढ़ रहे थे, उम्र कि बहिन फातिमा(रजि०) ने उन्हें छिपा दिया, फिर बहनोई सईद (रजि०) ने दरवाज़ा खोला.

उम्र ने ये कहते हुए कि, "क्या तुम लोग सोचते हो कि तुम्हारे मुसलमान बन ने कि मुझे खबर नहीं है?" ये कहते हुए उम्र ने बहन-बहेनोई को मारना पीटना शुरू कर दिया और इतना मारा कि बहन का सर फट गया. किन्तु इतना मार खाने के बाद भी बाहें ने इस्लाम छोड़ने से इनकार कर दिया.

बहन के इस दृढ संकल्प ने उम्र के इरादे को हिला कर रख दिया. उन्होंने अपनी बाहें से कुरआन के पन्ने पन्ने दिखाने को कहा. कुरआन के उन् पन्नो को पढने के बाद उम्र का मन भी बदल गया. अब वह मुसलमान बन ने का इरादा कर मुहम्मद (सल्ल०) से मिलने के लिए चल दिए.

उम्र ने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) से विनम्रता पूर्वक कहा: "मै इस्लाम स्वीकार करने आया हूँ. मई गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं है और मुहम्मद(सल्ल०) अल्लाह के रसूल हैं. अब मई मुसलमान हूँ."

इस तरहे से मुसलमानों कि संख्या निरंतर बढ़ रही थी. इसे रोकने के लिए कुरैश ने आपस में समझोता किया. इस समझोते के अनुसार कुरैश के सरदार आप(सल्ल०) के परिवार मुत्तलिब खानदान के पास गए और कहा: "मुहम्मद को हमारे हवाले करदो. हम उसे क़त्ल कर देंगे और इस खून के बदले हम तुमको बहुत सा धन देंगे. यदि एसा नहीं करोगे तो हम सब घेराव करके तुम लोगों को नज़रबंद रखेंगे. न तुमसे कभी कुछ खरीदेंगे, न बेचेंगे और न ही किसी प्रकार का लेनदेन केंगे. तुम सब भूख से तड़प-तड़प कर मर जाओगे."

लेकिन मुत्तलिब खानदान ने मुहम्मद (सल्ल०) को देने से इनकार करदिया, जिसके कारण मुहम्मद (सल्ल०) अपने चाचा अबू-तालिब और समूचे खानदान के साथ एक घाटी में नज़रबंद कर दिए गए. भूख के कारण उन्हें पत्ते तक खाना पड़ा. ऐसे कठिन समय में मुसलमानों के कुछ हमदर्दों के प्रयास से यह नज़रबंदी समाप्त हुई.

इसके कुछ दिनों बाद चाचा अबू तालिब चल बसे. थोड़े ही दिनों के बाद खादिजा(रजि०) भी नहीं रहीं.

मक्का के काफिरों ने बहुत कोशिश कि कि मुहम्मद (सल्ल०) अल्लाह का पैगाम पहुचना छोड़ दे. चाचा अबू-तालिब कि मौत के बाद उन काफ़िरो के हौसले और बढ़ गए. एक दिन आप (सल्ल०) काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे कि किसी ने ओझडी (गंदगी) लाकर आपके ऊपर दाल दी, लेकिन आप ने न कुछ बुरा-भला कहा और न कोई बद्दुआ दी.

इसी प्रकार एक बार आप(सल्ल०) कहीं जा रहे थे, रास्ते में किसी ने आप के सर पर इत्ती दाल दी. आप घर वापस लौट आये. पिटा पर लगातार हो रहे अत्याचारों को सोच कर बेटी फातिमा आप का सर धोते हुए रोने लगी. आप (सल्ल०) ने बेटी को तसल्ली देते हुए कहा: "बेटी रो मत! अल्लाह तुम्हारे बाप कि मदद करेगा."

मुहम्मद (सल्ल०) जब कुरैश के ज़ुल्मो से तंग आ गए और उनकी ज्यादतियां असहनीय हो गयीं, तो आप(सल्ल०) ताइफ़* चले गए, लेकिन यहाँ किसी ने आप को ठहराना तक पसंद नहीं किया. अल्लाह के पैगाम को झूठा कह कर आपको अल्लाह का रसूल मानने से इनकार कर दिया.

सकीफ कबीले के सरदार ने तैफ के गुंडों को आप के पीछे लगा दिया, उन्होंने पत्थर मार मार कर आप को बुरी तरेह से ज़ख़्मी कर दिया. किसी तरेह आप ने अंगूर के एक बाग़ में छिप कर अपनी जान बचाई.

*ताइफ़ एक नखलिस्तान(रेगिस्तान के उपजाऊ भाग को नखलिस्तान कहते हैं) था जहाँ मक्का के अमीर कुरैश सरदारों के अंगूर के बाग़, खेती और महेल थे जिनकी देखभाल वहां का सफीक नाम का कबीला करता था.

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