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भाग १.१


शुरुआत कुछ इस तरेह हुई की भारत सहित दुनिया में यदि कहीं विस्फोट हो या किसी व्यक्तियों की ह्त्या हो और उस घटना में संयोगवश मुसलमान शामिल हों तो उसे इस्लामिक आतंकवाद कहा गया.

थोड़े ही समय में ही मीडिया सहित कुछ लोगों ने अपने-अपने निजी फायेदे के लिए इसे सुनियोजिज़ तरीके से इस्लामिक आतंकवाद की परिभाषा में बदल दिया. इसे सुनियोजित प्रचार का परिणाम यह हुआ की आज कहीं भी विस्फोट हो जाए उसे तुरंत इस्लामिक आतंकवादी घटना मानकर ही चला जाता है.

इसी माहोल में पूरी दुनिया में जनता के बीच मीडिया के माध्यम से और पश्चिमी दुनिया सहित कई अलग अलग देशों में अलग अलग भाषाओं में सैकड़ो किताबे लिख लिख कर ये प्रचारित किया गया की दुनिया में आतंकवाद की जड़ सिर्फ इस्लाम है.

इस दुष्प्रचार में यह प्रमाणित किया गया की कुरआन में अल्लाह की आयतें मुसलमानों को ये आदेश देती हैं की - वे, अन्य धर्म मानने वाले काफिरों से लादेन उनकी बेरहमी के साथ ह्त्या करें या उन्हें आतंकित कर ज़बरदस्ती मुसलमान बनाएं, उनके पूजास्थलों को नष्ट करें - यह जिहाद है और जिहाद करने वाले को अल्लाह जन्नत देगा. इस तरेह योजनाबद्ध तरीके से इस्लाम को बदनाम करने के लिए उसे निर्दोषों की ह्त्या कराने वाला आतंकवादी धर्म घोषित कर दिया गया और जिहाद का मतलब आतंकवाद बताया गया.

सच्चाई क्या है? यह जानने के लिए हम वही तरीका अपनाएंगे जिस तरीके से हमें सच्चाई का ज्ञान हुआ था. मेरे द्वारा शुद्ध मन से किये गए इस पवित्र प्रयास में यदि अनजाने में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए पाठक मुझे क्षमा करेंगे.

इस्लाम के बारे में कुछ भी प्रमाणित करने के लिए यहाँ हम ३ कसौटियां लेंगे-

  1. कुरआन मजीद में अलाह के आदेश
  2. पैगम्बर मोहम्मद(सल्लल्लाहु अलेही व सल्लम) के जीवनी
  3. हज़रात मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलेही व सल्लम) की कथनी यानी हदीस.

इन तीनो कसौटियों से अब हम देखते हैं की:

  • [क्या वास्तव में इस्लाम निर्दोशो को लड़ने और उनकी ह्त्या करने व हिंसा फैलाने का आदेश देता है?
  • [क्या वास्तव में इस्लाम लोगों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाने का आदेश देता है?
  • [क्या वास्तव में हमला करने, निर्दोषों की ह्त्या करने व आतंक फैलाने का नाम ही जिहाद है?
  • [क्या वास्तव में इस्लाम एक आतंकवादी धर्म है?

सर्वप्रथम एस बताना आवश्यक है की हज्तर मोहम्मद (सल्ल०) अलाह के महत्वपूर्ण व अंतिम पैगम्बर है. अलाह ने आसमान से कुरआन आप पर ही उतारा. अलाह का रसूल होने के बाद से जीवन पर्यंत २३ सालो से आप (सल्ल०) ने जो किया, वह कुरआन के अनुसार ही किया.

दुसरे शब्दों में हज़रात मोहम्मद (सल्ल०) के जीवन के यह २३ साल कुरआन या इस्लाम का व्यावहारिक रूप हैं. आतः कुरआन या इस्लाम को जानने का सबसे महत्वपूर्ण और आसान तरीका हज़रात मुहम्मद (सल्ल०) की पवित्र जीवनी है, यह मेरा स्वयं का अनुभव है. आपकी जीवनी और कुरआन मजीद पढ़कर पाठक स्वयं निर्णय कर सकते हैं की इस्लाम एक आतंक है? या आदर्श.

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