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भाग ४.६


इस्लाम में आदर्श न्याय

इस्लाम की न्यायिक व्यवस्था दुनिया में सर्वोच्च है.
इस्लाम में दुश्मनों के साथ भी सच्चा न्याय करने का आदेश, न्याय के सर्वोच्च आदर्श को प्रस्तुत करता है इसे निचे दी गई आयत में देखिये:

ऐ ईमान वालों! खुदा के लिए इन्साफ की गवाही देने की लिए खड़े हो जाया करो ओर लोगों की दुश्मनी तुम को इस बात पर तैयार न करे की इन्साफ छोड़ दो. इन्साफ किया करो की यही परहेज़गारी की बात है और खुदा से डरते रहो.
कुछ शक नहीं की खुदा तुम्हारे तमाम कामो से खबरदार है.
-कुरआन, सुरा ५, आयत- ८

बदनाम किया जता है की इस्लाम में गैर मुसलमानों के साथ ही नहीं, दुश्मनों के साथ भी ज्यादती की मनाही है, इस्लाम में देखें:

और जो लोग तुमसे लड़ते हैं, तुम भी खुदा की राह में उनसे लड़ो, मगर ज्यादती न करना की खुदा ज्यादती करने वालों को दोस्त नहीं रखता.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १९०

इस्लाम में किसी निर्दोष की ह्त्या की इजाज़त नहीं है. ऐसा करने वालों की एक ही सज़ा है, खून के बदले खून. लेकिन यह सज़ा केवल कातिल को ही मिलनी चाहिए और इसमें ज्यादती मना है. इसे ही तो कहते हैं सच्चा इन्साफ. देखिये निचे दिया गया अल्लाह का यह आदेश:

और जिस जानदार का मारना खुदा ने हराम किया है, उसे क़त्ल न करना मगर जायज़ तोर पर (यानी शरियत के फतवे के मुताबिक) और जो शक्स ज़ुल्म से क़त्ल किया जाए, हम ने उसके वारिस को अख्तियार दिया है (की ज़ालिम कातिल से बदला ले) तो उस को चाहिए की क़त्ल (के किसास) में ज्यादती न करे की वह मंसूर व फतहयाब कई.
-कुरआन, सुरा १७, आयत- ३३

मोमिनो! तुमको मक्तूलों के बारे में किसास (यानी खून के बदले खून) का हुक्म दिया जाता है ( इस तरेह पर की) आज़ाद के बदले आज़ाद (मारा जाय) और गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत और अगर कातिल को उसके (मकतूल) भाई भाई (के किसास में) से कुछ माफ़ कर दिया जाए तो (वारिस मकतूल को) पसंदीदा तरीके से (क़रारदाद की) पैरवी तरीके से अदा करना चाहिए. यह परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे लिए आसानी और मेहरबानी है, जो इसके बाद ज्यादती करे, उसके लिए दू:ख का अज़ाब है.
-कुरआन, सुरा २, आयत-१७८

और ऐ अक्ल वालो! कशास (के हुक्म) में (तुम्हारी) जिंदगानी है की तुम (क़त्ल व खुरेजी से) बचो.
-कुरआन, सुरा २, आयत- १७९

अगर किसी को वसीयत करने वाले की तरफ से (किसी वारिस की) तरफ दारी या हक्लात्फ़ी का डर हो तो अगर वह (वसीयत को बदल कर) वारिसो में सुलह करा दे, तो उस पर कुछ गुनाह नहीं. बेशक खुदा बख्शने वाला (और) रहम वाला है
-कुरआन, सुरा २, आयत- १८२

और जो चोरी करे, ओरत हो या मर्द,उसके हाथ काट डालो. यह उन फ़लों की सज़ा और खुदा की तरफ से सीख है और खुदा ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है.
-कुरआन, सुरा ५, आयत-३८

मोमिनो! तुमको जायज़ नहीं है की ज़बरदस्ती औरतों के वारिस बन जाओ और (देखना) इस नियत से की जो तुमने उनको दिया है उस में से कुछ लेलो, उन्हें (घरो में)मत रोक रखना. हाँ अगर वे खुले तोर पर बाद-कारी करें, (तो रोकना मुनासिब नहीं) और उनके साथ अछि तरह से रहोसहो. अगर वह तुम को ना-पसन् हो तो अजब नहीं की तुम किसी चीज़ को न-पसंद करो और खुदा उसमें बहुत-सी भलाई पैदा कर दे.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- १९

जो माल माँ-बाप और रिश्तेदार छोड़ मरे, थोड़ा हो या बहुत, उसमें मर्दों का भी हिसा है और ओर्तों का भी. ये हिस्से खुदा के मुक़र्रर किये हुए हैं.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- ७

इस्लाम की सर्वोत्तम न्यायिक व्यवस्था के कारण ही इस्लामिक देशो में (जहां यह व्यवस्था लागू है) क़त्ल, डकैती, राहजनी, बलात्कार, व्यभिचार और चोरी आदि नहीं है. दुनिया के लोग बड़े आश्चर्या से देखते हैं की दुबई, इरान, इराक, सौदी अरब, कुवैत आदि मुस्लिम देशों में जुमे की अजान होते ही दुकानदार अपनी-अपनी दुकानों में करोडो की कीमत का कुन्तलों सोना छोड़ कर नमाज़ पढने के लिए चल देते हैं. दूकान में किसी के न रहने पर भी कोई चोरी नहीं होती है.

आज सारी दुनिया में नोजवानो को अफीम से बनी नशीली दवाएं डस रही है, लेकिन यह इस्लामी न्यायिक व्यवस्था का ही कमाल है की इस्लामी न्याय प्रणाली लागू करने वाले देश इन सामजिक बुराइयों से बचे हैं.

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