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भाग ४.४

जो खुदा इल्तिजा करते हैं की ऐ परवरदिगार ! हम ईमान ले आयें, सो हमको हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा और दोज़ख के अज़ाब से बचा.

ये वही लोग हैं जो (कठिनाइयों में) सब्र करते हैं और सच बोलते हैं और इबादत मै लगे रहते और (खुदा की) राह मै खर्चा करते और सहर (भोर) के वक़्त मै गुनाहों की माफ़ी मानागा करते हैं.

खुदा तो इस बात की गवाही देता है की उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं है और फ़रिश्ते और इल्म वाले लोग, जो इन्साफ पर काकाम हैं, ये भी (गवाही देते हैं की) उस गाकिब हिकमत वाले के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है.
-कुरआन, सुरा ३, आयत- १६, १७, १८ 

किसी चीज़ को खुदा का शरीक न बनाना और माँ-बाप से (बाद सलूकी, न करना, बल्कि) सुलूक करते रहना और निर्धनता (के खतरे) से अपनी ओलाद को क़त्ल न करना, क्यों की तुम को और उन को हम रोज़ी देते हैं और बे-हयाइ के काम ज़ाहिर हों या छिपे हुए, उन के पास फटकना. और किसी जान (वाले) को जिस के क़त्ल को खुदा ने हराम कर दिया है क़त्ल न करना, मगर जायज़ तोर पर जी का शरियत हुक्म दे. इन बातों की वह तुम्हे ताकीद फरमाता है, ताकि तुम समझो.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- १५१ 

और ऐसे लोगों की तोबा कुबूल नहीं होती जो (साड़ी उम्र) बुरे काम करते रहे, यहाँ तक की जब उन में से किसी की मोत आ मोजूद हो तो उस वक़्त कहने लगे की अब मई तोबा करता हूँ और न उसकी (तोबा कुबूल होती है) जो कुफ्र की हालत मै मरे. ऐसे लोगों के लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है.
-कुरआन, सुरा ४, आयत- १८

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