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भाग ५.४


न तस्य कार्य करण च विद्ते
न तत्स्माश्चाभ्याधिकाश्च दृश्यते
प्रास्य शक्तिर्विधैर्व श्रूयते
स्वाभाविकी ज्ञान बल क्रिया च ।। ८ ।।

-श्वेताश्वतारोपनिश्दम, अध्याय ६

अर्थ- उस (ब्रह्म) के शरीर और इन्द्रियाँ नहीं हैं. उसके सामान और उससे बढ़कर भी कोई दिखाई नहीं देता, उसकी पराशक्ति नाना ओरकार की ही सुनी जाती है और वह स्वाभाविकी ज्ञान क्रिया और बल क्रिया है.
- शंकर भाश्यर्थ (आदि शंकराचार्य कृत भाष्य का अर्थ)


न तस्य कश्चित्पतिरास्ती लोके
न चेशिता नैव च तस्य लिंगम।
सा कारणं कर्नाधिपधिपो
न चास्य कश्चिज्जनिता न चाधिप:।।९।।

-श्वेताश्वतारोपनिश्दम, अध्याय ६

अर्थ- ब्रम्हांड में उसका कोई स्वामी नहीं है, न तो कोई शासक या उसका चिन्ह ही है, वह संका कारण है और इन्द्रियाधिष्ठाता जीव का स्वामी है. उसका न कोई उत्पत्ति करता है न स्वामी है.

- शंकर भाश्यर्थ (आदि  शंकराचार्य  कृत भाष्य का अर्थ)

एको देव: सर्वभूतेषु गूढ़:
सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा।।
कर्माध्यक्ष: सर्भूताधिवास:
कर्माध्यक्ष: सर्वभूताधिवास:
-श्वेताश्वतारोपनिश्दम, अध्याय ६


अर्थ: समस्त प्राणियों में इस्थित एक ब्रह्म है (वह सर्वव्यापक, समस्त भूतों का अंतरात्मा, कर्मो का अधिष्ठ, समस्त प्राणियों में बसा हुआ, सबका साक्षी, सबको चेतनत्व प्रदान करने वाला है।
- शंकर भाश्यर्थ (आदि  शंकराचार्य  कृत भाष्य का अर्थ)

यो ब्रह्मण विद्यादाती पूर्व
यो वी वेदाश्च प्रहिणोति तस्मै।
तहं देव्मात्न्बुद्धिप्रकाषम
मुमुक्षुवे शरणमहम प्रपद्ये ।।१८।।
-श्वेताश्वतारोपनिश्दम, अध्याय ६


अर्थ: जो श्रृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा को उत्पन्न करता है और जो उसके लिए वेदों को प्रवृत्त करता है, अपनी बुद्धि को प्रकाशित करने वाले उस ब्रह्म की मई मुमुक्ष शरण ग्रहण करता हूँ।
- शंकर भाश्यर्थ (आदि  शंकराचार्य  कृत भाष्य का अर्थ)

-श्वेताश्वतारोपनिश्दम, अध्याय ६

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