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भाग ५.२

पारी धामानि यानी ते त्वं सोमासी विश्वतः
पवमान ऋतुभिः 
- ऋग्वेद, मंडल ९, सूक्त ६६, मंत्र ३


भावार्थ- पर्मान्मा उत्पत्ति, स्थति तथा प्रलय (यानी कियामत) तीनो प्रकार की क्रियाओं का हेतु है. अर्थात उसी से संसार की उत्पत्ति और उसी में स्थति और उसी से प्रलय होता है.
- हिन्दी भाष्य महर्षि दयानंद

त्वं धां च महिव्रत प्रिथ्विम छाती उभ्रिशे.
प्रति डरापिममुन्च्थाह पवमान महित्वना
- ऋग्वेद, मंडल ९, सूक्त १००, मंत्र ९

भावार्थ- परमेश्वर ने द्युलोक, और पृथ्वीलोक को ऐश्वर्यशाली बनाकर उसे अपने रक्षा कवच से आक्षादित किया ऐसी विच्त्र रचना से इस अनंत ब्रम्हांड को रचा है की उसके महत्व को कोई नहीं पा सकता.
- हिंदी भाष्य महर्षि दयानंद

यो: न पिटा जनिता यो विधाता धामनी वेड भुवनानि विश्वा
यो देवना नामधा एक एव सम्प्रश्नम भुवना यन्त्यन्या
- ऋग्वेद, मंडल १०, सोकत ८२, मंत्र ३

भावार्थ- जो परमेश्वर हमारा पालक, हमारा उत्पन्न करने वाला जो समस्त जगत का निर्माता है और समस्त स्थानों और लोकों तथा पदार्थों को जानता है और जो समस्त पधार्थों का नाम रखने वाला है वही अद्वितीय (यानी उसके बराबर दुसरा कोई नहीं है). समस्त समस्याओं का वही एक मात्र समाधान है.
- हिंदी भाष्य महर्षि दयानंद



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