(उन से) पूछो की भला तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है की मख्लुकात को पहले पैदा करे (और) फिर उस को दोबारा बनाए. कह दो की खुदा ही पहली बार पैदा करता है, फिर वही उसको दोबारा पैदा करेगा तो तुम कहाँ उलटे जा रहे हो?
पूछो की भला तुम्हारे शरिकों में ऐसा कोई है की हक का रास्ता दिखाए. कह दो की खुदा ही हक का रास्ता दिखता है, भला जो हक का रास्ता दिखाए, वह इस काबिल है की उसकी पैरवी की जाए वह की जब तक कोई उसे रास्ता न बताये, रास्ता न पाए. तो तुम को क्या हुआ है, कैसा इन्साफ करते हो?
-कुरआन, सुरा १०, आयत- ३४, ३५
और मुशरिक कहते हैं की अगर खुदा चाहता है तो न हम ही उस के सिवा किसी चीज़ को पूजते और न हमारे बड़े ही (पूजते) और न उस के (फरमान के) बगैर हम किसी चीज़ को हराम ठहराते. ( ऐ पैग़म्बर!) इसी तरह इन से अगले लोगों ने किया था, तो पैगम्बरों के जिम्मे (खुदा के हुक्मो को) खोल कर पहुचा देने के सिवा और कुछ नहीं.
और हम ने हर ज़मात में पैगम्बर भेजा की खुदा ही की इबादत करो और बुतों (की पूजा करने) से बचो, तो उनमे कुछ ऐसे हैं जिन को खुदा ने हिदायत दी और कुछ ऐसे हैं, जिन पर गुमराही साबित हुई, सो ज़मीन पर चल-फिर कर देख लो की झुठलाने वालो का अंजाम कैसा हुआ.
-कुरआन, सुरा १६, आयत- ३५,३६
बात यह है की हमने उनके पास हक पहुचा दिया है और ये (जो बुत्पस्ती किये जाते हैं) बेशक झूठे हैं.
खुदा ने न तो किसी को (अपना) बेटा बनाया है और न उस के साथ कोई और पूज्य है.
-कुरआन, सुरा २३, आयत- ९०, ९१
कह दो की मै तो अपने परवरदिगार ही की इबादत करता हूँ और यह भी कह दो की मै नुक्सान और नफे का कुछ अख्तियार नहीं रखता.
यह भी कह दो की खुदा (के अज़ाब) से मुझे कोई पनाह की जगह नहीं देखता.
हाँ खुदा की (तरफ से हुक्मो का) और उस के पैगामों का पहुचा देना (ही मेरे जिम्मे है) और जो शख्स खुदा और उसके पैगम्बर की नाफ़रमानी करेगा तो ऐसों के लिए जहन्नम की आग है, हमेशा-हमेशा उसमे रहेंगे.
-कुरआन, सुरा ७२, आयत- २०,२१,२२,२३
शुरू खुदा का नाम लेकर, जो की बड़ा कृपालू, अत्यंत दयालू है.
(ऐ पैगम्बर! इस्लाम के इन नास्तिकों से) कह दो की ऐ काफिरों!
जिन (बुतों) को तुम पूजते हो, उन को मै नहीं पूजता,
और जिस (खुदा) की मै इबादत करता हूँ, उसकी तुम इबादत नहीं करते,
और (मैं फिर कहता हूँ की) जिन की तुम पूजा करते हो, उन की मै पूजा करने वाला नहीं हूँ.
और न तुम उसकी बंदगी करने वाले (मालूम होते) हो, जिस की मै बंदगी करता हूँ.
तुम अपने दीन पर और मै अपने दीन पर.
-कुरआन, सुरा १०९, आयत- १,२,३,४,५,६
शुरू खुदा का नाम लेकर, जो की बड़ा कृपालू, अत्यंत दयालू है.
कहो की वह (जात पाक जिस का नाम) अल्लाह (है) एक है
(वह) माबूदे बरहक़, बे-नियाज़ है.
न किसी का बाप है और न किसी का बेटा,
और कोई उसका हम सर (साथी) नहीं.
-कुरआन, सुरा ११२, आयत- १,२,३,४
और जिन लोगों ने हमारी आयातों को झुठलाया, वे बहरे और गूंगे है. (इसके अलावा) अँधेरे में (पड़े हुए), जिसको खुदा चाहे, गुमराह कर दे और जिसे चाहे सधे रास्ते पर चला दे.
कहो, (काफिरों!) भला देखो तो, अगर तुम पर खुदा का अजाब आ जाए या कियामत आ मोजूद हो, तो क्या तुम (ऐसी हालत में) खुदा (यानी परमेश्वर) के सिवा किसी और को पुकारोगे? अगर सच्चे हो (तो बताओ).
(नहीं) बल्कि,(मुसीबत के वक़्त तुम) उसी को पुकारते हो, तो जिस दु:ख के लिए उसे पुकारते हो, वह अगर चाहता है, तो उसको दूर कर देता है और जिनको तुम शरीक बनाते हो, ९उस वक़्त) उन्हें भूल जाते हो.
और हमने तुम से पहले बहुत-सी उन्मातों की तरह पैगम्बर भेजे, फिर (उनकी ना-फर्मानियों की वजेह से) हम उन्हें सख्तियों और तकलीफों में पकड़ते रहें, ताकि आजिजी करें.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- ३९, ४९, ४१, ४२
(ऐ पैगम्बर! कुफ्फार से) कह दो की जिन को तुम खुदा के सिवा पुकारते हो, मुझे उनकी इबादत से मना किया गया है. (यह भी) कह दो की मै तुम्हारी ख्वाहिशों की पैरवी नहीं करूंगा, ऐसा करूँ हो गुमराह हो जाऊं और हिदायत पाए हुए लोगों में न रहूँ.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- ५६