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भाग ३.७

पैम्फलेट में लिखी २४वें क्रम की आयत है :

२४- "उन (काफिरों) से लड़ो! अल्लाह तुम्हारे हांथो उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकुआब्ले में तुम्हारी सहायता करेगा, और 'ईमान' वालों के दिल ठन्डे करेगा."

पैम्फलेट में लिखी पहले क्रम की आयत में हम विस्तार से बता चुकी हैं की कैसे शान्ति का समझोता तोड़ कर हमला करने वालों के विरुद्ध सुरा ९ की यह आयतें आसमान से उतरी. पैम्फलेट में २४वे क्रम में लिखी आयत इसी सुरा की है जिसमे समझोता तोड़ हमला करने वाले अत्याचारियों से लड़ने और उन्हें दण्डित करने का अल्लाह का आदेश है जिससे झगडा-फसाद करने वालों के हौसले पस्त हो और शान्ति की स्थापना हो. इससे और स्पष्ट करने के लिए कुरआन मजीद की सुरा ९ की इस १४वी आयत के पहले वाली २ आयतें दे रहे हैं:

और अगर अहद (यानि समझोता) करने के बाद अपनी अपनी कसमो की तोड़ डाले और तुम्हारे दीं में ताने करने लगे, तो उन कुफ्र के पेशवाओं से जुंग करो, (ये बे-ईमान ओग हैं उर) इनकी कसमो का कुछ ऐतबार नहीं है. अजब नहीं की (अपनी हरकतों से) बाज़ आ जाएँ.
- कुरआन, पारा १०, सुरा ९, आयत- १२

भला तुम लोगों से क्यों न लड़ो, जिन्होंने अपनी कसमों को तोड़ डाला और (खुदा के) पैग़म्बर के निकालने का पक्का इरादा कर लिया और उन्होंने तुमसे (किया गया अहद तोड़ना) शुरू किया. क्या तुम ऐसे लोगों से डरते हो, हालांकि डरने लायक खुदा है, बशर्ते की ईमान रखते हो.
- कुरआन, पारा १०, सुरा ९, आयात -१३

अतः शान्ति स्थापना के उद्देश्य से उतरी सुरा ९ की इन आयातों को शांति भंग करने वाली या झगडा-फसाद कराने वाली कहने वाले या तो धूर्त हैं अथवा अज्ञानी.

निष्कर्ष:- ४० वर्ष की आयु से हज़रात मुहम्मद (सल्ल०)  को अल्लाह से सत्य का सन्देश मिलने के बाद से अंतिम समय (यानी २३ वर्षों) तक अत्याचारी काफोरिन ने aap (सल्ल०) को चैन से बैठने नहीं दिया. इस बीच लगातार और साजिशों का माहोल रहा.

ऐसी परिस्थितियों में आत्मरक्षा के लिए दुश्मनों से सावधान रहना, माहोल गंदा करने वाले मुनाफिकों (यानी कपटचारियों) और अत्याचारियों का दमन करना या उनपर सख्ती करना या उन्हें दण्डित करना एक आवश्यकता ही नहीं, कर्त्तव्य था.

ऐसी परिस्थितियों में आत्मा रक्षा के लिए दुश्मनों से सावधान रहना, माहोल गंदा करने वाले मुनाफिकों (यानी कपटचारियों) और अत्याचारियों का दमन करना या उनपर सख्ती करना या उन्हें दण्डित करना एक आवश्यकता ही नहीं, कर्त्तव्य था.

ऐसे दुष्टों, अत्याचारियों और कपटचारियों के लिए ऋग्वेद में पर्पेश्वर का आदेश हैं-

मायाभिरिन्द्र मायिनः त्वं शूक्ष्म्वातिर:|
विदुश्तम तस्य मेधिरास्तेषा श्वान्स्युत्तिर ||
- ऋग्वेद, मंडल १, सूक्त ११, मन्त्र ७

भावार्थ - बुद्धिमान मनुष्यों को इश्वर आदेश देता है की-
साम, दाम, दंड और भेद की युक्त से दुष्ट और शत्रु जानो का नाश करके विद्या और चक्रवर्ती राज्य की यथावत उन्नति करनी चाहिए तथा जैसे इस संसार में कपटी, छली और दुष्ट पुरुष वृद्धी को प्राप्त न हों, वैसे उपाय निरंतन करना चाहिए.
-हिंदी भावार्थ महर्षि दयानंद

अतः पैंफलेट में दी गई २४ आयतें अल्लाह के वे फरमान हैं, जिनसे मुसलमान अपनी व एकेश्वर सत्य धर्म इस्लाम की रक्षा कर सके. वास्तव में ये आयतें व्यावहारिक सत्य धर्म हैं. लेकिन अपने राजनीतिक फायदे के लिए कुरआन मजीद की इन आयातों की गलत व्याख्या कर और उन्हें जनता के बिच बतवा कर कुछ स्वार्थी लोग, मुसलामानों व विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच क्या लड़ाई-झगडा कराने व घृणा फैलाने का बीज बो नहीं रहे? क्या यह सुनियोजित तरीके से जनता को बहकाना व बरगलाना नहीं हैं?

१९८६ में छपे इस पर्चे को अदालत के फैसले की आड़ लेकर आखिर किस मकसद से छपवाया और बंटवाया जा रहा है?

जनता ऐसे लोगों से सावधान रहे, जो अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस तरेह के कार्यों से देश में अशांति फैलाना चाहते हैं.

ऐसे लोग क्या नहीं जानते की दूसरों के दूसरों से सम्मान पाने के लिए पहले खुद दूसरों का सम्मान करना चाहिए.

ऐसे लोगों को चाहिए की वे पहले शुद्ध मन से कुरआन को अछि तरेह पढ़ ले और इस्लाम को जान ले फिर उसके बाद ही इस्लाम पर टिपण्णी करें, अन्यथा नहीं.

हो सकता है इस पर्चे को छापने व बांटने वाले भी मेरी तरेह ही अनजाने में भ्रम एमी हों, यदि ऐसा है, तो अब सच्चाई जान्ने के बाद कई भाषाओं में छपने वाले इस पर्चे को छपवाना बंद करें और अपने किये के लिए प्रायश्चित कर सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगे.

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