Loading

भाग ४ .१

मैंने अनुभव किया है की ईश्वरीय ज्ञान वाली रहस्यमयी किताबे पढने व समझने के लिए तन के साथ-साथ मन की शुद्धता भी ज़रूरी है तभी उनका रहस्य समझ में आता है.

इसी शुद्धता के साथ जब मैंने ईश्वरीय किताब कुरान मजीद पढ़ी, तो अल्लाह की रहस्यमयी आयातों के सच्चे अर्थ समझ में आने लगे. अल्लाह की ओर से भ्जेई गई किताब कुरआन मानवता के कल्याण के लिए आसमान से उतिर जिसमे मानवता के लिए आदर्श ही आदर्श है.

कुरआन मजीद की प्रथम सुर: फतीह: ईश वंदना है जिसको पढने के बाद मन अपने आप एक अल्लाह (यानी परमेश्वर) की सर्वोच्चता को स्वीकार कर लेता है और वह उसी अल्लाह के प्रति आस्था तथा भक्ति से पूर्ण हो जाता है. मन की शुद्धता व आसक्ति भाव ससे पाठक स्वयं पढ़ कर देखे:

शुरू अल्लाह का नाम  लेकर, जो की बड़ा कृपालु, अत्यंत दयालु है.
सब तरेह की तारीफ़ खुदा ही के लिए है जो तमाम (यानी सम्पूर्ण) मख्लुकात (प्राणियों) का परवरदिगार (पालनहार) है (१) बड़ा मेहरबान, निहायत रहें वाला, (२) इन्साफ के दिन का हाकिम, (३) (ऐ परवरदिगार !) हम तेरी ही इबादत करते है, और तुझी से मदद मांगते हैं, (४) हम को सीधे रास्ते पर चला, (५) उन लोगो का रास्ता जिन पर तू अपना फजल व करम करता रहा, (६) न उनका जिन पर गुस्सा होता रहा उर गुमराहों का.(७)
-कुरआन, सुरा १, आयत- १,२,३,४,५,६,७

कुरआन के आध्यात्मिक आदर्श:
सुन रखो की जो मख्लूख (प्राणी) आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं, सब खुदा ही के (बन्दे और उस के मख्लूख) हैं और ये जो खुदा के सिवा (अपने बनाए हुए) शरीकों  को पुकारते हैं, वे (किसी और चीज़ के) पीछे नहीं चलते, सिर्फ जन के पीछे चलते हैं और सिर्फ अटकलें दौड़ा रहे हैं.
-कुरआन, सुरा १०, आयत- ६६

(ऐ पैगम्बर !) कह दो की लोगों! अगर तुम को मेरे दीं में शक हो तो (सुन रखो की) जिन लोगों की तुम खुदा के सिवा इबादत करते हो, मई उन की तो इबादत नहीं करता बल्कि मई खुदा की इबादत करता हूँ जो तुम्हारी पूहें कब्ज़े में कर लेता है और मुझ को यही हुक्म हुआ है की ईमान लाने वालो में हूँ. (१०४)

और खुदा को छोड़ कर ऐसी चीज़ को पुकारना जो न तुम्हारा कुछ कर सके और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो जालिमो में हो जाओगे.(१०६)
-कुरआन, सुरा १०, आयत- १०४, १०६
भला  लोगों ने मीन की चीजों से (कुछ को) पूज्य बना लिया है (तो क्या) वह उन को (मरने के बाद) उठा खडा करेंगे?
-कुरआन, सुरा २१, आयत- २१

कहो, क्या मै खुदा को छोड़ कर किसी और को मददगार बनू की (वही तो) आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला है और वही (सब को) खाना देता है और खुद किसी से खाना नहीं लेता. (यह भी) कह दो की मुझे हुक्म हुआ है की मै सबसे पहले इस्लाम लाने वाला हों और यह की तुम (ऐ पैगम्बर!) मुशरिकों में न होना.
-कुरआन, सुरा ६, आयत- १४

और जिनको तुम खुदा के सिवा पुकारते हो, वह न तुम्हारी ही मदद की ताक़त रखते हैं और न खुद अपनी ही मदद कर सकते हैं.
-कुरआन, सुरा ७, आयत- १९७

और अगर तुम उनको सीधे रास्ते की तरफ बुलाओ, तो सुन का सकें और तुम उन्हें देखते हो की (देखने में) आँखें खोले तुम्हारी तरफ देख रहे हैं, मगर (सच में) कुछ नहीं देखते. 
-कुरआन, सुरा ७, आयत- १९८

(उनसे) पूछो की तुम को आसमान व ज़मीन में रोज़ी कौन देता है या (तुम्हारे) कानों व आँखों का मालिक कौन है और बे-जान से जानदार कौन पैदा करता है और जानदार से बे-जानदार कौन पैदा करता है और दुनिया के कामों का इन्तिजाम कौन करता है. झट कह देंगे की अल्लाह, तो कहो की फिर तुम (खुदा से) डरते क्यों नहीं?

यही खुदा टी तुम्हारा पर्वार्दिगारे बार-हक है और हक बात के ज़ाहिर होने के बाद गुमराही के सिवा है ही क्या? तो तुम कहाँ फिर जाते हो?
-कुरआन, सुरा १०, आयत- ३१, ३२

Share

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More